श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा
( एक रचनात्मक गोसेवा महाभियान )
गावो विश्वस्य मातरः - गाय ही विश्व की माँ है,गोषु लोकाः प्रतिष्ठिता : - गाय में ही समस्त लोक प्रतिष्ठित हैं, मातरः सर्वभूतानां- गाय सभी भूतों की माँ है, भूतभव्यस्य मातरम्- गाय ही भूत और भविष्य की माँ है। गोस्तु मात्रा न विद्यते- गाय के समान संसार में कोई माँ नही हो सकती। गाय जीवनी शक्ति का स्रोत है। गाय अखिल ब्रह्माण्ड में व्याप्त विष का शमन करने की औषधि है। गाय देव एवं ऋषि प्राणों की पोषक है। गाय धर्म की अधिष्ठात्री है। ऐसी परम पवित्र सर्वहितैषणी वेदलक्षणा गाय एवं उनका वंश आज आसुरी प्रवृत्ति से ग्रस्त विषयलोलुप हृदयविहीन मानवाकार दानवों की अवैध कामनाओं का शिकार हो रहा है। अपुष्ट सूचना के आधार पर प्रतिवर्ष भारत की धर्मधरा पर डेढ़ करोड़ गोवंश की कत्लखानों में निर्ममता एवं क्रूरतापूर्वक हत्या हो रही है, इतना ही गोवंश निराश्रित एवं उपेक्षापूर्वक छोड़ दिया जाता है। इस तरह प्रतिवर्ष 3 करोड़ गोवंश की क्षति होती है। यह इस राष्ट्र पर गोहत्या के महापाप का विनाशकारी कलंक है। इसे मिटाना होगा।
सज्जनों! प्राकृतिक विज्ञान के अनुसार एक वेदलक्षणा गाय एक लाख प्राणियों को पोषाहार देने में समर्थ है क्योंकि गाय प्राणपोषक तत्वों तथा प्राणशोधक तत्वों का प्रचुर मात्रा में निष्पादन करती है। एक वेदलक्षणा गाय की निर्ममतापूर्वक हत्या करने से समाज,राष्ट्र एवं संसार की इतनी भयंकर क्षति होती है जिसकी पूर्ति गोसेवा के अतिरिक्त और किसी भी साधन से सम्भव नहीं है। इसी कारण गोहत्या को महापाप माना गया है। गाय सृष्टि की पोषक एवं संवर्धक होने से उसे पूज्या माता का स्थान अपौरुषेय वेदों एवं भारतीय संस्कृति में प्रदान किया गया है।
धर्मप्राण सज्जनों! भारत में आज भी दया और करुणा से प्रेरित होकर गोवंश की रक्षा एवं सेवा का कार्य धर्मात्मा सज्जनों द्वारा हो रहा है। देश में हजारों गोसेवा आश्रम है जहाँ गोवंश को आश्रय प्राप्त होता है। गोसेवा आश्रमों में बड़ी श्रद्धा से गोसेवा की जाती है, परन्तु यह कार्य सीमित प्रतीकात्मक एवं धार्मिकता के आधार पर मन्दगति से चल रहा है जबकि गोवंश की उपेक्षा एवं हत्या का कुकृत्य व्यापक, औद्योगिक रूप से धन प्राप्ति की अत्यधिक लालसा तथा अत्यन्त स्वार्थ के वशीभूत होकर आर्थिकता के आधार पर अतितीव्रता से सुरसा के मुँह की तरह फैलता जा रहा है। हमारी धार्मिक संस्थाएं केवल 5 प्रतिषत गोवंश को ही बचा पाती है,शेष 95 प्रतिशत गोवंश अर्थलोलुप क्रूर मानवाकार दानवों के स्वार्थपूर्ति का शिकार हो जाता है। अगर हमें इतनी बड़ी संख्या में गोवंश हत्या के परिणाम स्वरूप होने वाले भयंकर विनाश एवं क्षति से बचना है तो सर्वप्रथम सम्पूर्ण गोवंश को संरक्षण प्रदान करना होगा। इसके लिए क्रान्तियुक्त समग्रतापूर्वक रचनात्मक गोसेवा महाभियान की आवश्यकता है।
सज्जनों! गोवंश की उपरोक्त पीड़ा से पीड़ित सन्तहृदय से श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के आनन्दवन की भूमि पर इस राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा महाभियान की अभिव्यक्ति हुई। आनन्दवन पथमेड़ा भारत देश की वह पावन व मनोरम भूमि है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र से द्वारिका जाते समय श्रावण और भाद्रपद महीने में रुककर वृन्दावन से लाई हुई भूमण्डल की सर्वाधिक दुधारू, जुझारू, साहसी, शोर्यवान, सौम्यवान,ब्रह्मस्वरूपा वेदलक्षणा गायों के चरने व विचरने के लिए चुना था। यह आनन्दवन मारवाड़, काठियावाड़ तथा थारपारकर की गोपालन लोकसंस्कृति का ललित संगम तो है ही साथ ही भूगर्भ में बह रही पावन सरस्वती नदी,कच्छ के रण में फैली हुई सिन्धु नदी तथा धरा पर बहने वाली सावित्री नदी (लूणी) द्वारा जन्म-जन्म के पापों का शमन करने वाले श्री कृष्ण,कामधेनु एवं कल्पगुरु दत्तात्रेय की आराधना का परम पावन त्रिवेणी संगम स्थल है। इस स्थल को प्रज्ञाचक्षु ब्रह्मलीन स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज के अन्तःसखा गोलोकवासी पूज्य बाबा श्री हरिनाथजी एवं ब्रह्मर्षि श्री मगारामजी राजगुरू की प्रत्यक्ष सहमति से परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानन्दजी महाराज द्वारा पुनः सम्पूर्ण गोवंश संरक्षण के उद्देश्य से एक केन्द्रीय धुरी के रूप में चयनित किया गया।
संवत् 2050 के भाद्रपद महीने में दीर्घकालीन अज्ञातवास के उपरान्त सर्वाराध्य सद्गुरुदेव भगवान की आज्ञा से परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज का ब्रह्मर्शि श्री मगारामजी राजगुरू एवं सिद्धबाबा श्री हरिनाथजी के साथ इस पावन भूमि पर पदार्पण हुआ। इस स्थान पर निवास करते हुए निरन्तर 1 सप्ताह ध्यानस्थ होकर अतीत में इस क्षेत्र की समृद्ध गोपालन लोकसंस्कृति के विशाल दृष्य अपने दिव्य चक्षुओं से देखने के पश्चात् दोनों वीतराग सन्तों के साथ 3 दिन तक अनवरत इस अलौकिक दृश्य पर महत्वपूर्ण चर्चा करके कल्पगुरु दत्तात्रेय भगवान की अन्तः प्ररेणा से यह निर्णय लिया गया कि गत 11 शताब्दियों से कामधेनु, कपिला एवं सुरभि की सन्तान गोवंश पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा महाभियान का प्रारम्भ इसी स्थान से किया जाये जिससे इस महत्वपूर्ण अभियान को दैवीयशक्ति प्राप्त होती रहे और यह विश्व कल्याणकारी कार्य पूर्ण सफलता को प्राप्त करें। पूज्य बाबाजी एवं ब्रह्मर्शिजी ने श्रद्धेय गोऋषिजी से आग्रहपूर्वक कहा कि आपको इस महान कार्य में निमित्त बनना होगा तथा यहीं रहकर इस अभियान का संचालन करना है। पूज्य सन्त महापुरुषो के इस आग्रह को श्रद्धेय गोऋषिजी ने भगवत् प्रेरणा समझकर मौन स्वीकृति प्रदान कर दी साथ ही दोनों महात्माओं से आग्रह किया कि आपश्री के करकमलों से ही इस परम पवित्र कार्य का शुभारम्भ होना चाहिये। दोनों सन्तो ने इस निवेदन को स्वीकार करते हुए दूसरे ही दिन आनन्दवन के मध्य भाग में विशाल जाल (पीलू के वृक्ष) के शीर्ष पर निज करकमलों से शुद्ध केसरिया ध्वज को स्थापित कर यह घोषणा की कि इस स्थान से भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा, करुणा एवं मानवता की जननी वेदलक्षणा गोमाता की महिमा का सन्देश जन-जन तक पहुँचाया जायेगा और कल्पगुरु दत्तात्रेय भगवान सहित इस कल्प के समस्त ऋषियों, राजर्षियों, महर्षियों, देवर्षियों, ब्रह्मर्षियों, सिद्धपुरुषों एवं कल्प के सभी देवी देवताओं की अलौकिक व दैवीय ऊर्जा इस कार्य हेतु आज से ही निरन्तर सक्रिय हो जायेगी।
पूज्य सन्तों की उद्घोषणा के पश्चात् 17 सितम्बर 1993 को पुनः भारत की पवित्र गोचारण भूमि द्वारका क्षेत्र आनन्दवन पथमेड़ा से राष्ट्रव्यापी रचनात्मक एवं सृजनात्मक गोसेवा महाभियान का सूत्रपात हुआ। इसी दिन सांचोर के गोरक्षक वीरों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 15 पर ट्रक में गुजरात के कत्लखानें ले जाये जा रहे 22 वेदलक्षणा गोवंश को तथा पाकिस्तान की सीमा पर ले जायी जा रही 8 सवत्सा गायों को गोतस्करों से छुड़ाकर इस भूमि पर लाया गया। स्थानीय गोभक्तों के निवेदन पर पूज्य ब्रह्मऋषि श्री मगारामजी राजगुरु तथा सिद्धबाबा श्री हरिनाथजी महाराज के आत्मीय आग्रह एवं पूज्य श्री गोऋषिजी की स्वीकृति से उपरोक्त वेदलक्षणा गोमाताओं के सहज,सर्वहितकारी आगमन पर गोसेवा के महाप्रकल्प का इस धरा पर शुभारम्भ हुआ। सन् 1993 में आयोजित वेदलक्षणा गोगीता जयन्ती महोत्सव के पावन पर्व पर गोऋषिजी एवं पूज्य गोसेवाप्रेमी सन्तों द्वारा इस गोसेवा प्रकल्प का नाम ‘श्री गोधाम महातीर्थ आनन्दवन पथमेड़ा रखा गया।